लौट के क्यों वसंत आया लगता है
वही फिक्र ले वसंत आया लगता है
इस जमीं का पतझड़ गया ही नहीं
कोई ख्वाब में वसंत आया लगता है
भोंपू, भाषण, रैलियाँ, आम सभाएँ
वो पाँच साला वसंत आया लगता है
नयी हवा नहीं न नए कायदे हुए
ये बे फ़जूल वसंत आया लगता है
मंदिर मस्जिद हिंदू मुस्लिम फसाद
वक्त बे-वक्त वसंत आया लगता है
ठंड से न भूख से मौत की खबर थी
क्या सचमुच वसंत आया लगता है
ज़र्द पत्ते छाएँ हैं गुलों के मौसम में
इलाही, नया वसंत आया लगता है
बुझे चेहरों की शमा फिर जली रवि,
ये बे-मौसम वसंत आया लगता है
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Monday, July 7, 2008
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