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Monday, July 7, 2008

बड़ी उम्मीदों से आए थे

अवाम को आईना आखिर देखना होगा
हर शख्स को अब ग़ज़ल कहना होगा

यही दौर है यारो उठाओ अपने आयुध
वरना ता-उम्र विवशता में रहना होगा

बड़ी उम्मीदों से आए थे इस शहर में
लगता है अब कहीं और चलना होगा

जमाने ने काट दिए हैं तमाम दरख़्त
कंटीली बेलों के साए में छुपना होगा

इश्क में तुझे क्या पता नहीं था रवि
फूल मिलें या कांटे सब सहना होगा

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